Monday, December 17, 2018

भारत की सम्पर्क-भाषा


राष्ट्रीय स्तर पर अगर हम भारतीय भाषाओं के पक्ष में बात कर रहे हैं तो हमें कभी न कभी आपसी सम्पर्क के लिये अंग्रेजी भाषा की अनिवार्यतः से मुक्त होना होगा। यों हिंदी को एक क्षेत्रीय भाषा के तौर पर प्रचारित करने की मुहिम भी विगत कुछ दशकों से सुनियोजित तौर पर चलाई जा रही है, जो लगभग एक सच्चाई के तौर पर स्वीकार ली गई है। लेकिन इस देश में सम्पर्क-भाषा के तौर पर हिंदी ने अपनी उपस्थिति और उपयोगिता लगभग हरेक क्षेत्र में साबित कर दी है, इससे अब इनकार नहीं किया जा सकता। इसे विड़ंबना ही कहा जायेगा कि हिंदी का देशभर की सम्पर्क भाषा के तौर पर प्रचलित होना, देश के राजनेता, प्रशासक और उद्योग जगत अपने हित में नहीं मानता और यही सबसे बड़ी बाधा है। हमें सभी भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने की बात करना होगी साथ ही अंग्रेजी की सम्पर्क-भाषा की हैसियत को हिंदी से स्थानापन्न करना होगा। यह विचार स्वतंत्रता संग्राम करने वाले सभी बड़े विचारकों का था और आज भी प्रासंगिक और भारतीयता के पक्ष में है। 

सन् 2050 में भारत के बच्चे आपस में किस भाषा में सम्वाद करेंगे? इस पर आज ही विचार करना होगा। विचार करिये कि सन् 2050 में क्या तमिलभाषी आपस में तमिल का उपयोग कर रहे होंगे? हो सकता है कि वे बोली के तौर पर तमिल में वार्तालाप करें, लेकिन उनके लिखने-पढ़ने की भाषा तमिल होगी यह संदिग्ध होगा। इस कारण है आज अंग्रेजी की बढ़ती स्वीकार्यता और लिपि के तौर पर रोमन का बढ़ता प्रयोग। आज तमिलभाषी बच्चे भी आपस में लिखते समय रोमन लिपि का उपयोग कर रहे हैं। यही हाल हिंदी समेत सभी भारतीय भाषाओं की है।

अतः हमें आज ही समाधान की दिशा में कदम बढ़ाने होंगे। हम गर्भऩाल-न्यास की ओर से स्कूली बच्चों में कम्प्यूटर पर टाइप करने में यूनिकोड को अपनाने की मुहिम चला रहे हैं।

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