Thursday, August 11, 2011

पिंजरा



जब होता है इंसान अवस / और जतन बेअसर / ऐसे कमज़ोर पलों में / भीतर से उपजते हैं समाधान

कभी जब इच्छाएँ प्रकटती हैं / प्रबल और बेहिसाब / उन्हें बीन-फटककर / छानने-छाँटने का बनता है योग / तब बिखराव अचानक / प्रकट होता है / ऐसे कि जैसे / हाथों से छूट जाए सूप / और फर्श पर बिखर जाएँ / गेहूँ के दाने

यूं तो बेवसी का दौरा / पड़ता है हर एक पर / कुछ हत भागे / गिरफ्त में रहे आते हैं / उम्रभर-ताजिंदगी

कि जैसे / अचकन पड़ जाती है / पुरानी और गैरचलन / ठीक वैसे ही / कामनाएँ / छीजती हैं और / बासी भी पड़ती हैं

बाहर का अनंत / खोजती है ऑंख / मगर भीतर का अँधेरा / नापना मुश्किल

तुम्हारी अधमुँदी / कामना / जुगनू के माफिक / चमकती है अँधेरे में / उठता है हाथ / पकड़ नहीं पाता कुछ भी / खालीपन / हमेशा का साथी / आ चिपट जाता है / सीने से - सदा की तरह

वो बनाती है तमाशा / मैं ढाँकता हूँ कमतरी / वो उकसाती है अकसर / मैं खर्चने से डरता हूँ / वह छू देती है नब्ज / और जगता है अहंकार / नृत्यरत हवाएँ / ठहर जाती हैं - औंचक

उसे है चमक से लगाव / और गाँठ में बाँधने की चाह / गहरे तक उतर / खुशनुमा क्षणों को / वो अपनाना चाहता है

यूँ नहीं करता वो / करने योग्य काम / गुजरे जमाने का दोगलापन / उसके रक्त में है शामिल / फिर करता है सवाल खुद से

सुरक्षित जीवन नहीं चाहता मैं / जब अवसाद पहुँचाता है दु:ख / सुरक्षा जीवन को खत्म कर देती है

उसे नहीं होता कभी / किसी बात पर अपराधबोध / इस शब्द पर / उसका नहीं है यकीन / वह अपने सहज / आवेगों के संग / जीना चाहता है

कहता है वह / अपनी ही लौ में बहने में / कैसा अपराधबोध / किसी के बारे में / नैतिक निर्णय / वह नहीं लेता / और इस तरीके से वह / उन्मुक्त जीवन / जीना चाहता है

उसने सीखा है जिंदगी से / खुश रहना खुद से / निजी चुनाव है / किसी का मज़ाक उड़ाना / किसी को तकलीफ पहुँचाना / नहीं है खुशी के बहाने

जब वह होता है तार्किक / सहज आवेग और इच्छाएँ उभर आती हैं / लगता है उसे / तकलीफ बढ़ रही हैं उसकी

ज्यादा लोग / हमेशा ही / जो चाहते हैं / कर नहीं पाते / तकलीफ में पड़ने का / यह भी एक है बहाना

वह ज़िंदा रहना चाहता है / एकदम उन्मुक्त और आजाद / अगर यह मुक्ति न हो / उसे लगता है हर दम / वह है पिंजरे में कैद जानवर / कहता है वह / बंधन खोल दो / मैं मर जाना चाहता हूँ



बात है मामूली / पर लगती है गूढ़ / गर वेदना और तकलीफ न हो / कोई कभी गलतियों से / सबक लेने को / राजी नहीं होता.

Wednesday, July 27, 2011

जहाज कौ पंछी

जैसे उड़ि जहाज कौ पंछी पुनि जहाज पै आवै... मार्का विचारों को लिए दिये ब्लॉग पर लौटा हूं. इस बीत बहुतेरे पानी बह गया है. हालांकि - जल में कमल, कमल में जल है - मार्का जुमले भी याद आ रहे हैं. तो भी मन की बात जारी रहे, कोशिश करूंगा.