Sunday, July 20, 2008

दिसंबर १९८४ की एक रात

चाँदी जैसे उज्जवल मुख की
सुन्दरी मुझे सहलाती है
घुँघराले काले बाहों से
वह रोज मुझे बहलाती है
आकाश से लम्बी आशाएँ
वह रोज मुझे दे जाती है
तन की - मन की - यौवन-धन की
वह रोज झलक दिखलाती है
बस इच्छा इतनी होती है
थोड़ा-सा उसे छूकर देखूं
अफसोस तो बस इस बात का है
वह रोज स्वप्न में आती है.

No comments: