Friday, September 26, 2008

रुटीन

हरेक अपने रुटीन का आदी होता है. यह बदलते ही छटपटाहट होती है. एक रुटीन के छूटते ही दूसरे को जमाने का प्रयास शुरू हो जाता है. लगातार एक जैसे काम नीरसता पैदा करते हैं और जोश में उन्हें बदलने की झोंक उठती है.

एक बार जंगल में जानवरों की सभा हुई. सभी ने तय किया कि स्वतंत्रता हमारा जन्मसिध्द अधिकार है सो हमारे भाईबंद जो आदमियों द्वारा बंधक बनाये या पाले गए हैं, उन्हें छुड़ाना चाहिए. क्राँति के सूत्रपात के तहत एक-एक करके सभी पालतू जानवरों को छुड़ाने का उपक्रम आरंभ हुआ. अंत में तेली के यहाँ कोल्हू के बैल के पास पहुँचे और उसे स्वतंत्रता के गीत सुनाये गए. कहा गया कि स्वतंत्रता हर जीव का जन्मसिध्द अधिकार है. बैल औंचक देखता रहा और बोला- इससे क्या फायदा होगा? सब बोले- तुम आजाद हो जाओगे. अपनी मर्जी से घूम फिर सकोगे और अपनी मर्जी से खा-पी सकोगे. बैल को बात कुछ समझ नहीं आई, लेकिन सभी का आग्रह था सो वह भी स्वतंत्र होकर जंगल में पहुँच गया. यहाँ उसके साथ सब कुछ नया और रोमांचक था. चारों ओर हरी-भरी घास थी. पीने को झरनों का स्वच्छ पानी था. आराम करने को पेड़ों की छाँव थी. खाओ-पिओ और आराम करो. उसने भरपेट खाया और आराम करते खाए हुए को पगुराया. एक झपकी भी ली.
और इस तरह कई दिन गुजर गए. खा लिए, पी लिए और मौज उड़ा ली, लेकिन जल्दी ही लीक पर चलने का सनातन अभ्यास जोर मारने लगा और बिना काम के वह बोर होने लगा. अब क्या करूँ नामक सवाल उसके दिमाग में बार-बार खड़ा हो रहा था. जंगल में बैल को करने लायक कुछ था भी नहीं. ज्यों-ज्यों वह दिमाग पर जोर डाले उसकी बेचैनी बढ़ने लगती. वह सोचने लगा और निष्कर्ष निकाला कि स्वतंत्रता का क्या यही मतलब है. अगर यह ऐसी ही है तो यह बड़ी कठिन है. खा-पीकर आराम करो और करने को कुछ नहीं. कितने दिनों तक यह सब चलता रहेगा. बैल से यह नयी स्वतंत्रता हजम नहीं हुई और वह बेचैनी में पड़ गया और अंतत: एक दिन सुबह तेली के दरवाजे पर खड़ा हो गया.

तेली ने बैल को देखा तो बोला- क्यों भई, क्या हुआ तुम्हारी स्वतंत्रता का. बैल मुँह लटकाए रहा और कोल्हू के पास जाकर खड़ा हो गया. तेली ने उसे फिर छेड़ा- बोलो भाई अपनी स्वतंत्रता के बारे में. बैल मरी आवाज में बोला- खाया-पिया और आराम किया. पर वहाँ करने को कुछ था नहीं सो ऐसी स्वतंत्रता किस काम की. मुझे बड़ी बेचैनी हो रही थी. लगा इससे अच्छा तो अपना पुराना काम ही था. खाने-पीने को कम मिलता था. डाँट अलग पड़ती थी, लेकिन रोजनदारी का काम तय था. दिमाग पर कोई जोर नहीं डालना पड़ता था. वहाँ तो दिमाग पर भारी जोर डाला पर करने लायक कुछ सूझा ही नहीं सो वापस आ गया.

1 comment:

bhanu said...

bhut badiya is khani me badhi bat hai !