Tuesday, March 3, 2009

शव और शिव

अवमानना (अपमान) वह ताप है जो आपके भीतर छुपे विकारों को उकसाता है -- वे खौलने लगते हैं और परीक्षा की घड़ी तो तब आती है जब वे बाहर बगरने को आतुर हो जाते हैं. मज़ा यह कि अधिकतम लोग इस खौलते लावे को बाहर उगल देते हैं और सारी ऊर्जा व्यर्थ बह जाती है. कुछ गिने-चुने समर्थ लोग इस खौल को कण्ठ में धारण कर लेते हैं -- ना निगलते हैं, ना उगलते हैं और तत्काल क्रांति घटती है शव होने की परिणति शिव होने की ओर चल पड़ती है.

5 comments:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

तभी तो वे नीलकण्ठ कहलाते हैं!!

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुंदर, अति सुंदर विचार.
धन्यवाद

Udan Tashtari said...

जय हो!!

MAYUR said...

jai ho bhole nath ki ,dhanyawad

स्वप्न मञ्जूषा said...

शव से शिव के परिणति की व्याख्या आपने बड़ी सरलता से और बहुत खूबी से कर दी | और सही मायनों में शिव, शिव क्यों हैं इसका थोड़ा सा ज्ञान आज ही मुझे आपकी रचना से मिला, बहुत बहुत आभारी हूँ आपकी |