मूँग की बड़ी डालते समय
उठा यह सवाल
कि इसमें कद्दू डालें या लौकी
वह थी अनजान
मैं भी सिफर
यह पहेली बूझने
उसने अपनी सास को फोन लगाया
वहाँ से उत्तर पाया
जो ठीक लगे डालो
साथ ही कहा
चलो अच्छा है
घर-गृहस्थी में
मन तो लगा तुम्हारा
पहेली अबूझी रही आयी
और मुँह बाये खड़ी रही
अब उसने
माँ को फोन लगाया
वह बोली
काहे परेशान होती हो
बाजार दर्जनों तरह की
बड़ियों से भरे हैं
जो मर्जी आये उठा लाओ
अब वह दोराहे पर थी
उलझन ने बस
रूप बदल लिया था.
Monday, April 20, 2009
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2 comments:
bhut hi sateek bat khi hai apne .
dhanywad
आत्माराम जी,
कुछ ऐसी ही बात मेरे साथ हो चुकी है | बहुत बढ़िया लिखा है आपने |
बधाई ही बधाई
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