फूल आई कचनार
प्रिया तुम पास नहीं हो
रातें हुईं पहार
प्रिय तुम पास नहीं हो
सूख गई मन की चिकनाई
गुजरी रात भोर हो आई
बिसर गई मनुहार
प्रिया तुम पास नहीं हो
लगते घर के कमरे खाली
ज्यों शरबत की चटकी प्याली
सूना सब संसार
प्रिया तुम पास नहीं हो
मेरा हाल हुआ है ऐसे
बिना नमक की दाल हो जैसे
घर में नहीं अचार
प्रिया तुम पास नहीं हो
मुँह उठाए फिरता हूँ ऐसे
बिना धनी की भैंस हो जैसे
पूंछ उठाए - खूंटा तोड़े भरती है हुंकार
प्रिया तुम पास नहीं हो
खा-पीकर फिर मौज मनाई
निंदा-रस की चाट उड़ाई
अपनी खातिर माथा कूटा
पर-स्वारथ को मैल न छूटा
ज़िंदगानी दिन-रात खरचकर
महिने की हुई पगार
प्रिया तुम पास नहीं हो
Thursday, November 6, 2008
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3 comments:
बहुत खुब , भाई बस एक बार बीबी से दुर गया था, इस मई महीने मै... ओर उस स्थिति से आप की कविता बिलकुल सही लगी.
धन्यवाद
क्या बात है आत्माराम जी. बहुत खूब!! आनन्द आ गया.
वाह ! वियोग श्रृंगार का सुंदर भावपूर्ण मनोहारी चित्रण किया है आपने.बहुत सुंदर......
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