प्रसिध्द फिल्मी डॉयलाग है- 'एक दिन में बड़ा आदमी बनूँगा'. जबकि असल ज़िंदगी में बहुत कम लोग इसे इस तरह और इन शब्दों में कहते हैं. यही कारण है कि अधिसंख्य लोग आम आदमी हैं. हालाँकि आम आदमी होना कोई बुराई नहीं है और ना ही बड़ा आदमी बनना कोई महान उपलब्धि. यह सिर्फ नजरिए का फर्क है जो इंसान को छोटा या बड़ा बनाता है. आप बदतर स्थितियों में बड़प्पन दिखा सकते हैं, जबकि सुख-सुविधा सम्पन्न वर्ग ओछी हरकतों के लिए कुख्यात हैं. बड़े आदमी होने की घटना बाहरी नहीं आंतरिक है. जैसे ही आप इस सपने को स्वीकार करते हैं - एक क्रांति-सी हो जाती है. चीजों के प्रति आपका नजरिया बदलने लगता है. समय का हरेक पल आपको कीमती महसूस होने लगता है.
अक्सर बड़ा आदमी होने से आशय आर्थिक तौर पर सुदृढ़ स्थिति वाले आदमी के तौर पर समझा जाता है. पद, पैसा और नाम वाले आदमी को भी बड़ा आदमी कहा जाता है. बड़े आदमी की यह बाहरी छवि है और प्राय: हरेक इसे हासिल करने के बारे में एक न एक बार सोचता जरूर है. आखिर सुख-सुविधाएं किसे बुरी लगती हैं. हरेक चाहता है - बंगला हो, गाड़ी हो, अर्दली हों, खरचने को पैसा हो, चार लोगों में नाम हो, अच्छे मददगार हों, सुंदर कपड़े हों. बड़े आदमी का बाहरी स्वरूप हरेक पाना चाहता है. कितने पा पाते हैं या पाने की दिशा में सोचकर रुक जाते हैं, यह दूसरी बात है.
स्थिर और जड़ समाज में यही बड़ी घटना समझी जाएगी कि लोग बड़े आदमी बनने की दिशा में सोचते तो हैं. सोचा हुआ ही किसी दिन व्यवहार में बदल जाता है. इच्छाशक्ति दृढ़ता प्रदान करती है. लगन भी उसी से उपजती है. जब एक बार किसी चीज की लगन लग जाती है तो उसे आदमी पाकर ही दम लेता है. इस हिसाब से बड़ा आदमी बनना बड़ा आसान काम है. सिर्फ लगन लगाने की जरूरत है और लगन बेचारी आसानी से लगती नहीं. अगर वह लग गई तो कभी न कभी इंसान बड़ा आदमी बन ही जाएगा. लगन ही उसे रास्ता सुझाएगी और वही रास्तों के काँटों को झेलने की ताकत भी पैदा करेगी. तब हँसते-हँसते इंसान सब मुश्किलों को स्वीकार करता जाता है और अंत में बड़ा आदमी बन जाता है.
Sunday, September 21, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
सही मानना है आपका कि यह सिर्फ नजरिए का फर्क है जो इंसान को छोटा या बड़ा बनाता है.छोटा या बड़ा आदमी बनने के लिए मनुष्य की अपनी सोंच होती है कि वह अपने किस पक्ष को मजबूत बनाना चाहता है ,शरीर , धन , परिवार बुद्धि , संतान या किसी अन्य तरह कs गुण को।
बहुत सही कह रहे हैं.
अच्छा लगा पढ़कर.
शर्माजी आपने बहुत ही सही बात कही .मुझे हमेशा ही लगता है कि बड़ा होना सिर्फ़ नजरिये की बात है .दिल से बड़ा होना ही सच में बड़े होना है एक शानदार नजरिये को मेरा सलाम !
Post a Comment