वे जब कर रहे थे
तैयारी
एक परीक्षा देने की
सैकड़ों अनजान थे
ऐसी किसी परीक्षा की बाबत
जो बदल देती है
नज़रिया ज़िंदगी का.
ऑंखें तो वे ही होतीं
पर दृश्य के मायने
बदल जाते हैं
कान तो वैसे ही
सुनते हैं
पर अहसास
जुदा होता है
इक तंग घेरे से
बड़े घेरे में
धकेल देती है
एक परीक्षा
उनका उठना-बैठना
बोल-बरताव
क्या-कुछ नहीं
बदल जाता
ऑंखोंभर दृश्य
और
कानोंभर शब्द
अलहदा असर करते हैं
वे हो जाते हैं खास
और बाकी
आम रह जाते हैं.
Thursday, September 11, 2008
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4 comments:
bahut badhiya achchi post. likhate rahiye. dhanyawad.
वे हो जाते हैं खास
और बाकी
आम रह जाते हैं.
अच्छी कविता जारी रखें।
बहुत ही सुन्दर कविता, वो हो जाते...
धन्यवाद
वाह!! बहुत उम्दा...अच्छा लिखा!
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