चाँदी जैसे उज्जवल मुख की
सुन्दरी मुझे सहलाती है
घुँघराले काले बाहों से
वह रोज मुझे बहलाती है
आकाश से लम्बी आशाएँ
वह रोज मुझे दे जाती है
तन की - मन की - यौवन-धन की
वह रोज झलक दिखलाती है
बस इच्छा इतनी होती है
थोड़ा-सा उसे छूकर देखूं
अफसोस तो बस इस बात का है
वह रोज स्वप्न में आती है.
Sunday, July 20, 2008
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