तीसरी कक्षा में पढ़ने वाली मेरी बेटी ने मुझे एक गाना सुनाया. मैंने सुना और हँस दिया. गाने पर आप भी गौर करें -
(सुनो गौर से दुनिया वालो, बुरी नज़र न हम पर डालो, चाहे जितना ज़ोर लगा लो) की तर्ज पर गाना था -
सुनो गौर से दुनिया वालो
फटे दूध की चाय बना लो
शक्कर-पत्ती कुछ न डालो
पीने वाले होंगे पाकिस्तानी
हमने बनायी है, तुम भी पियो...
इस गाने में - पाकिस्तानी - शब्द उसके दिमाग में कहाँ से आया? यह सवाल है. मैं जिस शहर में रहता हूँ वह पूरी दुनिया में गैस कांड के नाम से भी जाना जाता है और गैस कांड में हजारों मासूमों को जान गंवानी पड़ी. गैस त्रासदी के लिए जिम्मेदार देश के लिए मेरी बच्ची के दिमाग में कुछ भी नकारात्मक नहीं है? क्यों? जबकि पाकिस्तान हमारे साथ क्या-कुछ कर रहा है, वह अर्द्धसत्य ही ज्यादा है और जगजाहिर है कि राजनैतिक सच्ची तस्वीर उजागर होने के खिलाफ रहते है.
बच्चों के दिमाग में अनजाने ही बोए गए नफरत के इन बीजों की फसल कैसी होगी? सोच कर दिल काँप उठता है.
Saturday, December 19, 2009
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10 comments:
सादर वन्दे
हम उन्हें यही शिक्षा दे रहे है, गलती उनकी या राजनीतिज्ञों की नहीं हमारी है,
रत्नेश त्रिपाठी
यह तो एक छोटा सा उदाहरण है। हर रोज बच्चों के मन में इस प्रकार का जहर भरा जाता है और ऐसा करने वाले साफतौर पर वयस्क लोग यानी हम सब ही हैं। चिंता की बात यह है कि आने वाले समय में इस तरह नफरत को बढ़ावा देकर हम अपने बच्चों को क्या देकर जाएंगे।
अच्छी और चिंतनीय पोस्ट।
बड़े दिन बाद आपका कुछ नया पढ़ा मिल रहा है.कहीं व्यस्तता थी?
बड़ा गंभीर प्रश्न उपजा है आपकी इस पोस्ट से.
सचमुच में गंभीर प्रश्न है यह. धन्यवाद
वो अभी न-समझ है। उसको अच्छा उसने गुणगुना दिया। बहुत अच्छा वो अपने पिता से मन की बात बांटती है। फिर भी पाकिस्तानी शब्द जिसने भी एड किया होगा। वो नरफत का बीज बोना चाहता है।
कैमरॉन की हसीं दुनिया 'अवतार'
चिंता का विषय है.....
बड़ा अच्छा लगा जी चाय का स्वाद.............
अभिनन्दन !
आत्माराम जी,
सवाल गहरा है तो ज़ाहिर है कि उत्तर के लिए भी काफी आत्ममंथन करना पडेगा. फिर भी ऊपरी तौर पर दो तथ्य सामने दिख रहे हैं: पहला यह कि भोपाल गैस काण्ड किसी देश या वहां की सरकार/सेना आदि द्वारा सुनियोजित तरीके से नहीं किया गया था. बल्कि उसके ज़िम्मेदारों में बहुत से ऐसे भारतीय भी थे जो अपनी ज़िम्मेदारी में कोताही बरतते रहे थे इसलिए उसके लिए किसी देश-विशेष से नफरत पैदा होने का प्रश्न ही नहीं उठना चाहिए.
इसके विपरीत जिन्ना से लेकर मुशर्रफ तक पाकिस्तानी तानाशाहों और सेना का गैरजिम्मेदाराना बल्कि कुछ हद तक दानवी रूप जग-ज़ाहिर है. उसे भुलाने की कोशिश करना भी सही नहीं है. हाँ इतना ज़रूर है कि पाकिस्तान की उत्पत्ति भारत के प्रति प्रतिक्रियात्मक रूप में हुई है जबकि भारत के साथ ऐसा नहीं है इसलिए हमारा कर्त्तव्य बनता है कि हम अपने बच्चों को उस नफरत से बचाएं जिसे पाकिस्तान की शिक्षा-व्यवस्था में आधिकारिक रूप से ठूंसा जाता है.
समाज में होने वाली बातों का असर बच्चों पर भी होता है ......... किसी न किसी को तो भोगना ही है सत्य ........
प्रश् तो गंभीर है पर स्मार्ट इंडियन भाई जी से सहमत हूँ.
मुझे तो इससे भी गंभीर लगता है बाजारवाद का विष बच्चों के मन मस्तिस्क में ऐसा घुस गया है की अब इसे विष माना भी नहीं जाता.
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