Wednesday, June 24, 2009

हिंदी के पारस पत्थर

मुझे उसके पिता के बारे में पता नहीं था, पर उसके भाई को मैं जानता था. बचपने में ही सही मैंने उस पर एक लम्बी कविता लिखी थी. उसे देख मैं आज भी गहरीर् ईष्या में डूबने-उतराने लगता हूँ. उसका लिखा हुआ कोई महान साहित्य होगा, स्वयं वह भी इस बात पर शायद ही इत्तेफाक रखता हो. उसका एक कहानी संग्रह मैंने पढ़ा है. किस कदर उबाऊ और कठिन है, बताना मुश्किल है. अतुकांत कथा, कहीं से शुरू होगी, कहीं खत्म. उसका दावा है कि यह भविष्य का पाठ है. बातों की तरह उसकी कहानी में भी विशिष्ट बने रहने का आतंक बना रहता है. एक कृत्रिमता लगातार बनी रहती है. लिखता वह हिंदी में है, पर अधिकांश बातें अँगरेजी में करता है. अँगरेजी में बात करने से रौब के साथ-साथ विश्वसनीयता बरकरार रही आती है. अँगरेजी आज के समय की देवभाषा है. पूरी दुनिया का पता नहीं पर हमारे यहाँ आज भी श्रेष्ठी-वर्ग में इसे रौब-दाब के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है.

उसकी बोली-बानी मीठी और विचार तार्किक हैं. शब्दों का चयन और उनका उच्चारण बेलाग है. यह सलीका उसने परिवार के बड़ों से सीखा है. इसे उसने शुरूआती सफलता के मंत्रों की तरह रटा होगा. पहले प्रभाव में रोचकता पैदा हो इसमें बातचीत का लहजा महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. बोलने का उसका ढंग, उसकी विद्वता उजागर करता है. अपने को वह बहुत कंजूसी से खर्च करता है. बहुतेरे अपने आप को बाल्टी के पानी जैसा उड़ेल देते हैं कि अगर सिर से पाँव तक सराबोर हो जाए, पर बाल्टी के पानी का भीगा, सूखने भी जल्दी लगता है. वह अपने आप को चिलमची की टोटी से निकलने वाली पतली धार की तरह खोलता है. अपने को उलीचने की उसे कोई जल्दबाजी नहीं. जितनी देर वह रिसता है, अगला उतनी देर तक उसके प्रभाव में बना रहता है.

उसके पास सिलसिलेवार किस्से हैं, जिन्हें वह एक के बाद एक सुनाता जाता है, हँसता कम हँसाता ज्यादा है. अगले के मर्म को छूने के लिए वह बातों के पैंतरे आजमाने से नहीं चूकता. यही कारण है कि उसके पुरुष मित्रों की अपेक्षा महिला मित्र अधिक हैं. वह सुदर्शन न सही, उसका व्यक्तित्व चुंबकीय है. वह उच्च शिक्षा प्राप्त है. इसका वह बहुत कम इजहार करता है. वह जो भी लिखता है उसे इतिहास में दर्ज होना है, ऐसा उसके निकट मित्र कहते हैं. वे यह भी कहते हैं कि उसे अपने बड़े भाई के कारण साहित्य में बड़ा नुकसान उठाना पड़ा. यानी लम्बे समय तक उसे रचनाकार के तौर पर स्वीकार नहीं किया गया, बल्कि उसके भाई की ख्याति को उसके साथ चस्पा किया जाता रहा है. पर सच यह भी है कि उसे अपने भाई की ख्याति का लाभ भी बहुत मिला है, वरना उस जैसै क्रांतिकारी रचनाकार दर्जनों की संख्या में चप्पलें फटकारते घूम रहे हैं साहित्य सदन के बाहर.

उसकी एक छवि साहित्य-सदन के जुगाडुओं के तौर पर भी रही है. जिस नैतिकता की वह बात लिखते हुए करता है. वह उसके आचरण में कहीं दिखाई नहीं देता है. जिन दोगले कामों के लिए वह समाज को कोसता है, स्वयं भी वह वैसे काम करने में उसे गुरेज नहीं.

सत्ता में रहकर उसकी मुखालफत करना तलवार की धार पर चलने जैसा है. वह ऐसी किसी तलवार की धार पर नहीं चलता. वह सुविधाभोगी मीठा क्रांतिकारी रचनाकार है. अबूझ किस्म की कविताएँ, कहानियाँ, हाईकू लिखता है और हर तीसरी लाईन में अँगरेजी में लिखे-पढ़े जाने को 'कोड' करके अपनी विद्वता बखान करता है.

इन दिनों वह पारस पत्थर बनने के दौर में गुजर रहा है. कल जब वह पारस बन चुकेगा और अपने भाई की खाली छोड़ी जगह पर विराजेगा तो बहुतेरे पत्थरों को स्पर्श करके उन्हें सोना बनाने में समर्थ होगा.

8 comments:

ओम आर्य said...

ek achchhi post........

Unknown said...

kya khoob bhasha
kya khoob lekhan
waah
waah
_________badhaai !

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया पोस्ट लिखी है।बधाई स्वीकारें।

Udan Tashtari said...

बहुत अच्छा लगा यह आलेख पढ़ना.

Renu Sharma said...

aatmaram ji !!
namaskar
aapaka blog padha bahut achchha laga .
dher sari shubhkamnayen .
renu sharma...

Smart Indian said...

कहने की आवश्यकता नहीं है कि उन्हें बहुत से सरकारी पुरस्कार भी मिल चुके हैं.

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

भाई जी अब हम जैसे नौसिखियों को बता ही दें की वो कौन है ? आपने एक-एक पंक्ती मैं गहरा व्यंग है | खुद ही देखिये :

"अधिकांश बातें अँगरेजी में करता है. अँगरेजी में बात करने से रौब के साथ-साथ विश्वसनीयता बरकरार रही आती है. अँगरेजी आज के समय की देवभाषा है"
"उसकी बोली-बानी मीठी और विचार तार्किक हैं. शब्दों का चयन और उनका उच्चारण बेलाग है. यह सलीका उसने परिवार के बड़ों से सीखा है"
"वह अपने आप को चिलमची की टोटी से निकलने वाली पतली धार की तरह खोलता है. अपने को उलीचने की उसे कोई जल्दबाजी नहीं. "

सारे मैनेजमेंट के गुर अपनाया है |

Dr. Sudha Om Dhingra said...

यह आलेख बहुत अच्छा लगा -भाषा के सौन्दर्य की छठा बिखेर दी आप ने.
बड़ी सटीक बात कही है आप ने.