अभी तक ज़िंदा है
शरीर के भीतर
एक और शरीर
जो रोकता है
टोकता है
कटु-वचन बोलकर
भर उठता है
ग्लानि से
अपकर्म करके
करता है
पश्चाताप
पर-दुख-कातरता
अभी भी
बची है शेष
मेरे-तेरे भेद को
नहीं मानता
यह ठीक है कि
उसका जीवन
बहुत कम शेष है
लेकिन, निराश मत होओ मन
क्योंकि
मृत्यु-शैय्या पर
पड़ा रोगी
अभी मरा नहीं है
और आशा की डोर
अभी टूटी नहीं है
Sunday, January 18, 2009
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5 comments:
wah bhai wah
सही है
जब तक सांस
तबतक आस।
बहुत ही सुंदर ,संगीता जी से सहमत है.
धन्यवाद
बहुत सुन्दर.
अभी तक ज़िंदा है
शरीर के भीतर
एक और शरीर
जो रोकता है
टोकता है
कटु-वचन बोलकर
भर उठता है
ग्लानि से
बहुत सुन्दर........!
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