मन से उठी पुकार
प्रिया! घर आने वाली हैं...
घर की थानेदार
प्रिया! घर आने वाली हैं...
कागद-पत्तर करो व्यवस्थित
तकिया चारपाई और बिस्तर
तेल का पीपा धरो यथावत
होओ होशियार
प्रिया! घर आने वाली हैं...
विदा करो ठलुओं को घर से
बरतन-भांडे माँजो फिर से
करो सफाई घर की ऐसी
फैल जाए चमकार
प्रिया! घर आने वाली हैं...
हाथ चूम लेंगी वे आकर
लाड़ जताएँगी मुस्काकर
मन के झाँझ-मजीरे बोलें
खनकेगी खरतार
प्रिया! घर आने वाली हैं...
कानी कौंड़ी साथ न जाना
माया खातिर मन ललचाना
मौत सौतियाडाह करेगी
कर देगी बंटाढार
प्रिया! घर आने वाली हैं...
Monday, November 24, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
5 comments:
बहुत सुंदर रचना....सब की प्रिया एक सी नेचर की ही क्यूँ होती है...??? हा हा हा हा
नीरज
भाई बहुत ही सुंदर रचना, सब को अपनी जोरू थाने दारनी ही क्यो लगती है? असल मे तो होती बहुत ही सीधी साधी है....:)
विदा करो ठलुओं को घर से
बरतन-भांडे माँजो फिर से
करो सफाई घर की ऐसी
फैल जाए चमकार
प्रिया! घर आने वाली हैं...
kya baat hai.ye khoob sachaai byaan ki hai hazoor...
वाह जी बहुत सुंदर रचना है आपकी आत्माराम जी
आत्माराम जी मुझे पता चला है कि आप कोई मैग्जीन निकालते हो तो कभी उसके बारे में मुझे भी बता दो क्या रूल्स हैं और मैग्जीन लेने का क्या प्रोसिजर है
my email id is mohanvashisth0449@gmail.com
आत्माराम जी ,
विदा करो ठलुओं को घर से
बरतन-भांडे माँजो फिर से
करो सफाई घर की ऐसी
फैल जाए चमकार
प्रिया! घर आने वाली हैं
क्या ये सच है ?
Post a Comment