किये साज-श्रृंगार
प्रिया! घर आयेंगी
मन के खोले द्वार
प्रिया! घर आयेंगी
हृदय-तंतु झनझना उठेंगे
शहनाई की तान सुनेंगे
रोम-रोम पुलकित होगा
खनकेगा तन का तार
प्रिया! घर आयेंगी...
मन मयूर नाचेगा उस क्षण
देहरी लाँघ आओगी जिस क्षण
भर आयेगा कंठ
पुलक जाओगी बारम्बार
प्रिया! घर आयेंगी...
नई-नकोर पायलिया पहने
रुनक-झुनक चलने में खनके
तुम्हें देखकर नयी पड़ोसन
फेंकेगी चुमकार
प्रिया! घर आयेंगी...
सखी-सहेली की कनबतियाँ
याद आयेंगी मन की बतियाँ
उभर आयेगी -
अम्मा-बाबा की फिर-फिर पुचकार
प्रिया! घर आयेंगी...
देस पराये सबको जाना
आपस्वार्थी मन बौराना
मेरा-मेरा चीखे हरदम
कर न पाए उपकार
प्रिया! घर आयेंगी...
Wednesday, November 12, 2008
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2 comments:
बहुत ही सुंदर ओर गहरे भाव लिये है आप की यह सुंदर कविता.
धन्यवाद
अति सुंदर!
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